हाथियों ने मचाया उत्पात, कच्चे मकानों को तोड़ा

रोहांसी क्षेत्र में पिछले 26 दिनों से डेरा जमाए हाथी अब उत्पात मचाने लगे हैं। रोहांसी जंगल से लगे गांव टेमरी में किसानों के के खेतों में लगे सोलर पैनल को तोड़ दिया है। वहीं शुक्रवार की रात गांव में सब्जी बाड़ी लगाने वाले किसानों की बाड़ी में बने कच्चे मकानों को भी तोड़ा। पिछले दो दिनों से पांच से छह कच्चे मकानों को हाथियों ने रात में जाकर तोड़ा है। करीब 10 एकड़ की सब्जी बाड़ी को भी नुकसान पहुंचाकर मकान को तोड़ा है। इनमें लेखराम निषाद, रामा पटेल, टेकराम पटेल, जानू पटेल आदि शामिल हैं। 17 जंगली हाथियों का झुंड 14 अक्टूबर से महानदी पार कर बार नयापारा के घने जंगल से मैदानी इलाकों में धमनी जंगल के रास्ते प्रवेश किया जो पांच दिनों तक करीब 30 से अधिक गांवों में भ्रमण करते हुए राजधानी के करीब के गांवों तक जा पहुंचा था।

वह वापस आकर रोहांसी गांव के बांस की नर्सरी में पिछले 21 दिनों से अपना डेरा जमाए हुए है और आसपास के गांव टेमरी, खेलवारी, रोहांसी, खैरा, अमेठी के खेतों में लगे धान के फसल को रौंद रहे हैं। हाथियों के मैदानी इलाके में 21 दिनों से डेरा डालने से स्थानीय लोग और विभाग काफी चिंतित है। आखिर हाथी इस छोटे से नर्सरी में इतना लंबा समय तक कैसे टिके हुए हैं।

टेमरी के तालाब में पीते हैं पानी, पचरी टूटी

हाथियों का दल टेमरी के अंदर तक घुस कर वहां के तालाब में पानी पी रहा है। जिससे तालाब की पचरी भी टूट गई है। तालाब और आबादी क्षेत्र लगे होने से रात्रि में दिशा मैदान जाने के लिए उठने से लोग डरने लगे हैं। जिन गरीबों का कधाा मकान है वो तो सो भी नहीं पा रहे हैं क्योंकि हाथी अक्सर कच्चे मकान तोड़ देते हैं।

छोटी जगह में लंबे समय क्यों रुके हाथी, वजह ढूंढ रहे अधिकारी

पिछले 21 दिनों से रोहांसी के बहुत ही छोटी नर्सरी में हाथियों का दल इतने लंबे समय तक रुका हुआ है। इसकी वजह अधिकारी ढूंढ रहे हैं। विशेषज्ञों और विभाग के अधिकारी सभी का मानना है कि हाथियों को खदेड़ने के सारे उपाये किए गए और इतनी भारी मात्रा में पटाखा, मिर्ची मशालें, घेराबंदी की उसके बाद भी हाथियों का झुंड टस के मस नहीं हो रहा है। इसको लेकर सभी वजह ढूंढ रहे हैं क्योंकि बच्चों और पानी की वजह से इतना लंबा समय यहां रुकना संभव नहीं है, कुछ तो वजह होगी।

700 से अधिक किसानों का बनेगा मुआवजा प्रकरण

हाथियों के उत्पात से करीब 12 सौ एकड़ की धान फसल बर्बाद हुई है जिसमें 700 से अधिक किसानों का मुआवजा प्रकरण बनाया जा रहा है। वहीं किसान दुविधा में हैं कि अगर वो मुआवजा ले लिया तो उसका धान मंडी में नहीं बिकेगा जिसके कारण वे लोग पेशोपेश में है। वहीं संपत्ति नुकसान का भी अलग प्रकरण बनता है जिसका अभी सर्वे बाकी है।

– पिछले 26 दिनों से मैदानी इलाकों में जो नुकसान किया है उसमें करीब 700 लोगों के 12 सौ एकड़ की फसल क्षतिपूर्ति प्रकरण बनाया जा रहा है। संपत्ति हानि का भी सर्वे कराया जा रहा है। नुकसान की निर्धारित राशि 22500 रुपये धान का प्रति हेक्टेयर दिया जाएगा। किसानों की पूरी जमीन का मुआवजा प्रकरण नहीं बनाया जा रहा है इसलिए वो अपना धान मंडी में भी बेच सकते हैं। मुआवजा और धान बेचना दोनों अलग है। – आलोक तिवारी, डीएफओ

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