कम होती दिख रही यूपी में भाजपा की मुश्किलें

“सपा-बसपा ने बारी बारी यूपी की सत्ता पर काबिज होकर यहां से कांग्रेस का सूपड़ा साप किया था।अब दोनों मिलकर ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों को भी हासिल कर लेंगे तो केंद्र में भाजपा का विकल्प क्षेत्रीय दलों वाला तीसरा मोर्चा होगा। कांग्रेस के पास क्षेत्रीय दलों का समर्थन करने के सिवा कोई रास्ता नहीं होगा। कांग्रेस इस डरावने ख्वाब से घबराकर लोकसभा चुनाव में यूपी के क्षेत्रीय दलों को पनपने देना नहीं चाहती।और ना इनके आगे झुकना चाहती है। चाहे भाजपा का लाभ हो जाये लेकिन भाजपा विरोधी वोटरों पर क्षेत्रीय दल कब्जा ना करें। ये है कांग्रेस की अस्ल रणनीति।”

किस्मत साथ दे तो जंगल में भी मंगल हो जाता है। आसार बन रहे थे कि मोदी सरकार सत्ता से हाथ धो बैठेगी। लेकिन भाजपा की किस्मत तो देखिए कि सबसे बड़े विरोधी राजनीति दल ने ही मोदी सरकार रिपीट करने के आसार पैदा कर दिये। कांग्रेस में प्रियंका गांधी वाड्रा की धमाकेदार एन्ट्री भाजपा के लिए ही मुफीद साबित होने लगी।

कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक जददोजहद में अग्रणी भूमिका निभाने वाली प्रियंका की सक्रियता पर गौर कीजिए। एक राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस की महासचिव और सुपर प्रचारक होने के नाते उन्हें अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए देश के तमाम सूबों में दस्तक देनी चाहिए थी। लेकिन वो सिर्फ़ उस यूपी में कांग्रेस में जान फूंक रही हैं जहां हर सर्वे बता रहा था कि यहा सपा -बसपा गठबन्धन के आगे भाजपा का सूपड़ा साफ हो सकता है। देश में सबसे ज्यादा अस्सी सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मुख्यता सपा,बसपा और रालोद का ये मजबूत गठबंधन यूपी में भाजपा से कम से कम पचास सीटें छीनने के लिए काफी था। दलित,मुस्लिम और पिछड़ी जातियों के लगभग सत्तर प्रतिशत वोट बैंक को आकर्षित करने वाला ये गठबंधन सत्ता परिवर्तन के लिए काफी था। चर्चायें थी कि यूपी के भाजपा विरोधी गठबंधन में दस- पंद्रह सीटें पाकर कांग्रेस संतोष कर लेगी और ये महागठबंधन एक तरफा सत्तर सीटों से अधिक सीटे हासिल कर लेगा। ऐसे में भाजपा यूपी से करीब साठ-सत्तर सीटें गंवाने के बाद दो सौ सीटों में सिमट जायेगा। लेकिन ये अनुमान तब धरे रह गये जब कांग्रेस ने यूपी में 73 सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। गठबंधन ने कांग्रेस के लिए अमेठी रायबरेली की दो सीटें छोड़ने की पहले ही घोषणा कर दी थी।जिसका बदला चुकाते हुए कांग्रेस ने गठबंधन के बड़े नेताओं के लिए सात सीटें छोड़ दीं। इसपर गठबंधन और कांग्रेस में सौहार्द बढ़ने के बजाय तब और भी तल्खी पैदा हो गयी जब बसपा सुप्रीमों ने कह दिया कि कांग्रेस की इस दरियादिली की हमें कोई जरूरत नहीं। इससे पहले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस को नसीहत देते हुए कहा था कि कांग्रेस यूपी के बजाय देश के उन तमाम सूबों में मेहनत करे तो ये उसके लिए बेहतर होगा। अखिलेश यादव की मंशा थी कि जहां कांग्रेस का संगठन और जनाधार बचा है वहां पार्टी मेहनत करे तो एंटी इंकमबेंसी का लाभ उठा सकती है।

गौरतलब है कि इसके विपरीत कांग्रेस महासचिव प्रियंका पूरा देश छोड़कर अपनी पूरी ऊर्जा यूपी में लगाकर बसपा के दलित और सपा के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाकर सपा-बसपा गठबंधन को कमजोर कर सकती हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा के ग्लेमर के आकर्षण वाले तूफानी प्रचार का असर दिखने लगा है। ये असर भाजपा विरोधी मतदाताओं को प्रभावित कर सकता है। राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण कांग्रेस लोकसभा चुनाव में कुछ भाजपा विरोधियों का पहला विकल्प होती है। इन पहलुओं के मद्देनज़र यूपी में सपा-बसपा गठबंधन के संभावित तूफान की रफ्तार में ब्रेक लगाकर कांग्रेस की मेहनत भाजपा के लिए लाभकारी साबित हो सकती है।

जानकारों का मानना है कि यदि यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ता है तो मुस्लिम और दलित वोट बिखर कर सपा-बसपा को कमजोर करेगा। ऐसे में त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा यूपी में बड़े नुकसान से बच सकती है।

कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच 71 सीटों के मुकाबले का एक नया रंग नजर आया है। सोशल मीडिया में एक नयी चर्चा ये शुरू हो गयी है कि चुनाव के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती पाला बदलकर भाजपा को सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन दे सकती हैं। ऐसी चर्चाओं से यूपी की कुल आबादी का बीस फीसद मुसलमान भी प्रभावित हो सकता है। इस बात के मद्देनजर ही बसपा सुप्रीमो ने अपने बयान में कांग्रेस की बातों में ना आने की अपील की।

यही सब कारण हैं कि यूपी को लेकर भाजपा की बेचैनी कम होती जा रही है। सपा -बसपा गठबंधन को कमजोर कर रही कांग्रेस ने भाजपा की मुश्किलें कम कर दी हैं। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में यूपी में अपनी ताकत झोंकने का फैसला करके भाजपा विरोधी मत विभाजित करने के आसार पैदा कर दिये हैं।

-नवेद शिकोह

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