हास्य सम्राट काका हाथरसी, जिनकी मौत पर गूंजे ठहाके, ऊंट पर निकली शवयात्रा
क्या किसी के मरने पर ठहाके लगते हैं, सवाल अटपटा जरूर है, पर काका हाथरसी तो यही चाहते थे। ऐसा हुआ भी। ठहाकों के बादशाह काका हाथरसी की शवयात्रा ऊंटगाड़ी पर निकली और अंतिम संस्कार के समय श्मशान स्थल पर कवि सम्मेलन हुआ, जिसमें देश के प्रसिद्ध कवि अशोक चक्रधर मौजूद थे। संचालन ब्रजभाषा के प्रसिद्ध कवि सुरेश चतुर्वेदी ने किया। इसे संयोग ही कहेंगे कि काका हाथरस का आज (18 सितंबर को) जन्म व अवसान दिवस एक ही है। इसके चलते काका हाथरस स्मारक समिति ने स्मारक पर कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें पूर्व डीएम रविकांत भटनागर, एसडीएम सदर अरुण कुमार सिंह, पूर्व प्रधानाचार्य एससी शर्मा, साहित्यकार विधासागर विकल आदि मौजूद थे। कार्यक्रम संयोजक साहित्यकार गोपाल चतुर्वेदी थे।
काका ने विदेशों में भी फहराई हास्य पताका
हिंदी काव्य मंचों पर हास्य को वरीयता दिलाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। देश ही नहीं, विदेशों में भी उन्होंने हिंदी काव्य की पताका को फहराया और हास्य सम्राट के रूप में ख्याति पाई। केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मश्री की उपाधि से विभूषित किया। वसीयत में दर्ज उनकी इच्छा पूरी करने के लिए ही उनके अवसान के दौरान शव ऊंटगाड़ी में रखकर शवयात्रा निकाली गई थी। उनकी मृत्यु के बाद आंसू नहीं लोग ठहाके लगाते हुए नजर आए।
काका की गाथा
प्रभु से बने काका
प्रभुदयाल गर्ग का नाम काका किशोरावस्था में ही पड़ गया। वे लाउडस्पीकर लगाने के साथ नाटकों में मंचन करते थे। अग्रवाल समाज के कार्यक्रम में नाटक मंचन के दौरान उन्होंने काका का किरदार निभाया। अगले दिन वह जब बाजार से निकले तो लोगों ने उन्हें काका कहकर पुकारना शुरू कर दिया। ब्रजभाषा व संस्कृति का ज्ञान उन्हें विरासत में मिला। अंग्रेजी व उर्दू पर भी उन्होंने अच्छी पकड़ बना ली। उन्होंने अपने मित्र रंगी लाल के सहयोग से चित्रकारी भी सीखी। उन्होंने हारमोनियम, तबला, बांसुरी आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन किया। सबसे पहले उन्होंने मथुरा से अपनी पत्रिका का प्रकाशन किया। बाद मे खुद की संगीत प्रेस की स्थापना की, जो आज भी हाथरस में संचालित है।